माही नदी का उदगम स्थल धार जिले के सरदारपुर के मिंडा गाँव से होता है
नर्मदा और ताप्ति के बाद माहि पश्चिम और बहने वाली तीसरी नदी है
माहि भारत की पवित्र नदियों में से एक है
माही नदी को आदिवासियों की गंगा , दक्षिणी राजस्थान की स्वर्ण रेखा, कंठाल की गंगा भी कहा जाता है
इसकी लम्बाई लगभग 576 KM है
यह भारत की एक मात्र एसी नदी है जो कर्क रेखा को दो बार कटती है
मध्य प्रदेश में इसे मय माता के नाम से जानते है और गुजरात में जाकर माहीसागर के नाम से जानी जाती है ।
गुजरात का रबारी समाज माही को अपनी कुलदेवी के रूप में मानता है ।
माही नदी की सहायक नदिया सोम, जाखम, मोरन, इरु, अनास इत्यादि
माही नदी मध्य प्रदेश के धार जिले से निकलकर राजस्थान होकर गुजरात में जाकर खम्बात की खाड़ी में गिरती है
पौराणिक कथा
माही नदी की सागर के साथ सगाई हो गई थी । एक दिन उनके ससुर उनसे मिलने आए ।
उस समय माही अपने घर में छांछ बना रही थी । अचानक ससुर को आया देख , शर्म के मारे वह छांछ बनाने के मटके में छिप गई
मटके में छिपने से मटका लुढक कर टेकरी से निचे आकर फुट गया । जब मटका फुट गया तो माही जमीन में समाकर गुप्त रूप से
1 किलोमीटर दूर जाकर जयसमंद झील के एक कुण्ड में निकली । वही कुण्ड आज माही नदी का उदगम स्थल है ।
जयसमंद झील की पाल पर उनके पैरों के निशान आज भी है, पैरों के निशान के साथ शिवलिंग भी है ।
जहाँ पर छांछ का मटका फूटा था और माही जी जमीन में समाई थी वह स्थान आज भी मौजूद है वहा पर मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात
के लोग गाय का दूध या दही स्वंम खाने से पहले भोग लगाते है ।
मई माता
धार और झाबुआ जिलों की विभाजक रेखा के रूप में प्रवाहित माही नदी को भीलांचल के लोग 'मई माता' कहते है। सदा नीरा होने के कारण यह पवित्र, मयारी (ममतालु) और जीवनदायिनी मानी जाती है। इसलिए अंचल के लोग इसे देवी के रूप में पूजते हैं। इनके जल से काया नीरोगी रहती है। मान्यता के अनुसार पतिपत्नी एक साथ इसकी धारा को पार नहीं करते है । किम्वदन्ती है कि मई माता की सगाई छोटी उम्र में हो गयी थी। एक दिन वह मायके में दही बिलो रही थी कि ससुर आ गये। मई माता शर्मा कर मही (छाछ) के मटके में कूद गयी। मटके से मही की धारा फूट पड़ी। मई माता अब नदी हो गयी थी। मटके से प्रवाहित होने के कारण इस नदी को मटकों के सहारे पार करने का चलन हो गया।
माही और मधुवती नदियों का संगमस्थल अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि रही है। इसी संगम में स्नान करने पर उनके सींग गल गये थे । यहाँ स्थित शृंगेश्वर मंदिर भील जनजाति समूह की आस्था का केंद्र है।
मई माता की पूजा में नारियल, दूध, दही के साथ ओढ़नी समर्पित की जाती है। वैशाख पूर्णिमा को इस नदी में अस्थि विसर्जन को शुभ माना जाता है।
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