"क्या इस महान शायर अजमल सुलतानपुरी जैसी सोच कभी हमारे नेताओं में भी आएगी जो हमें आज भी मजहबों और सरहदों में बाँटे हुए है। सत्ता के लोभ ने इनकी नैतिकता की हत्या कर दी है। सरकार आज गरीबी रेखा भी मजहब के अनुसार निर्धारित करती है, मसलन हमारी बेटी उसका कल योजना में कोई गरीबी रेखा नही और निर्धन बालिका योजना में 11900/ वार्षिक। क्या इस तरह के कार्य हमें एकदूसरे से दूर नहीं कर रहे। अगर हमें समाज को जोड़ना है तो उसे बराबर की निगाह से देखना होगा। तुस्टीकरण किसी कौम को कुछ दे या न दे, अन्य कौम से उन्हें दूर जरूर कर रहा है।"