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शारीरिक संबंध रखने के बाद शादी से इनकार करना धोखा देना नहीं बॉम्बे हाईकोर्ट

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शारीरिक संबंध रखने के बाद शादी से इनकार करना धोखा देना नहीं, बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्रेमी को निर्दोष कहते हुए बरी किया
पुलिस ने आईपीसी की धारा 376 और 417 के तहत बलात्कार और धोखा देने का मामला दर्ज किया था. 19 फरवरी 1999 को अतिरिक्त सत्र न्यायालय ने प्रेमी को बलात्कार के आरोप से मुक्त कर दिया था. लेकिन उस पर धोखाधड़ी का इल्ज़ाम कायम रहा. मुंबई उच्च न्यायालय ने काशीनाथ को धोखा देने के आरोप से भी मुक्त किया.
आपसी सहमति से लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाए रखने के बाद शादी से इनकार करने को धोखा नहीं कहा जा सकता. मुंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने यह फैसला सुनाया है. इस संबंध में निचली अदालत के एक फैसले के तहत एक युवक को गुनहगार माना गया था. बॉम्बे हाई कोर्ट ने उस फैसले को बदल दिया है और प्रेमी को निर्दोष माना है.
इस मामले में प्रेमिका ने अपने प्रेमी के खिलाफ याचिका दाखिल की थी. प्रेमिका ने आरोप लगाया था कि उसके प्रेमी ने उसे शादी का झांसा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए. काफी दिनों तक शारीरिक संबंध कायम रखने वाला प्रेमी अब शादी करने से इनकार कर रहा है.

पुलिस ने बलात्कार का केस दर्ज किया था
इससे पहले पुलिस ने प्रेमी के साथ सख्ती से सलूक किया. प्रेमिका की शिकायत के बाद पालघर में रहने वाले प्रेमी के खिलाफ पुलिस ने आईपीसी की धारा 376 और 417 के तहत केस दर्ज किया था. इन धाराओं के तहत उस पर बलात्कार और धोखा देने का मामला दर्ज किया गया. 19 फरवरी 1999 को अतिरिक्त सत्र न्यायालय के न्यायमूर्ति ने प्रेमी को बलात्कार के आरोप से मुक्त कर दिया था. लेकिन उस पर धोखाधड़ी का इल्ज़ाम कायम रहा.
निचली अदालत ने दोषी ठहराया था
इस मामले से जुड़े प्रेमी का नाम काशीनाथ घरात है. काशीनाथ ने तीन साल तक प्रेमिका को शादी का आश्वासन दिया और शारीरिक संबंध कायम रखे. बाद में वह शादी की बात से मुकर गया. इस मामले में केस दर्ज होने के बाद सुनवाई के दौरान काशीनाथ को दोषी ठहराया गया और एक साल की कैद सुनाई गई थी. काशीनाथ से इस फैसले को मुंबई उच्च न्यायालय में चुनौती दी. इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई की एकल खंडपीठ के सामने हुई.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने शादी का झांसा देकर संबंध बनाने के तर्क को ठुकराया
मुंबई उच्च न्यायालय ने काशीनाथ को धोखा देने के इल्जाम से भी मुक्त कर दिया. सभी सबूतों, गवाहों के बयानात और लंबी बहस के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची कि काशीनाथ और संबंधित महिला के बीच पिछले तीन सालों से शारीरिक संबंध कायम है. लेकिन न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि महिला के तर्कों से यह साफ नहीं होता कि शारीरिक संबंध के लिए उसे किसी तरह का झांसा दिया गया था. यानी परस्पर सहमति से ही शारीरिक संबंध बनाए गए थे,

posted by bunkaryq