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Chhap Tilak Sab Chhini Re || छाप तिलक सब छीनी रे || Vinod Agarwal Best Bhajan || Govind Ki Gali

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GOVIND KI GALI

छाप तिलक सब छीनी रे १४वीं सदी के सूफी संत अमीर खुसरो जी की एक कविता है जिसे अक्सर क़व्वाली की तरह गाया जाता है। इसमें अपने इष्ट के प्रति समर्पण है कि जो भी अपने इष्ट की शरण मे जाता है, उसका अपान (अपनी पहचान )स्वतः ही मिट जाता है और वो अपने ही इष्ट के रंग में रंग जाता है।

गुरुदेव विनोद अग्रवाल जी की मधुर वाणी में ये भाव अपने आप मे ही बहुत कुछ कह जाता है तो क्यों न हम भी इस भाव मे अपने आप को खोकर , बहुत कुछ पाने की चेष्टा करें।

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#मौसे_नैना_मिलाये_के #सूफी_भाव #पदावली_सहित

posted by ssbsonguq