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तुम अपना कहती थी | Dr Kumar Vishwas | Kv Studio

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प्यार में अहंकार का आकार बढ़ा लेने वाले पत्थरों को छोड़कर हर सरलातरला नदी बूँदबूँद आँसू छलका कर आगे निकल ही जाती है ! पर वही नदी अपने आकार को उसके प्रति समर्पण वाले गाल के मनहर गड्ढों जैसे वर्तुलों में घिस घिसकर समाप्त करने वाले रेत के कण से लिपट लिपट जाती है ! तुमने तो न वक़्त के रेत की फिसलन समझी न हर हर भँवर के ख़िलाफ़ कणकण जूझते अपने इस उजाड़ बचे द्वीप का अकेलापन ! ख़ैर...”तुम अपना कहती थीं”.....तुम्हें याद हों न याद हो
#kumarvishwas #kavisammelan #hindipoetry #kavita

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posted by brondarsyn