हाइनरिष हिमलर के आदेश पर नाज़ियों ने पोलैंड से बच्चों को जबरन जर्मन बनाने के लिए अगवा किया. हेरमन लुइडेकिंग, योज़ेफ सोवा और अलोदिया वीताशेक कभी मिले तो नहीं, लेकिन तीनों की किस्मत एक ही कड़ी से जुड़ती है.
अपने जीवन के बारे में बताते हुए योज़ेफ सोवा की आंखें आज भी नम हो जाती हैं. नाज़ी सैनिकों ने 1943 में उनके मातापिता की पोलैंड में हत्या कर दी थी. फिर उन्हें और उनके चार भाईबहनों को जर्मनी ले जाया गया था. उनमें से चार वहां से लौटने में सफल रहे, लेकिन उनकी छोटी बहन यानीना को जर्मन बच्ची बताकर किसी को गोद दे दिया गया. वह अब भी जर्मनी में रहती हैं. ये अपहरण योजनाबद्ध तरीके से किए गए. 1941 में नाज़ियों के एसएस संगठन के प्रमुख हिमलर ने “पोलिश परिवारों से नस्लीय तौर पर उपयुक्त बच्चों को इकट्ठा करने और खास तौर पर बनाए गए किंडरगार्टनों और बालगृहों में उनका पालनपोषण करने” का आदेश दिया था.
प्रोफेसर इज़ाबेल हाइनेमन का कहना है कि ऐसा करके वे एक नई जर्मन नस्ल तैयार करना चाहते थे. कई दशकों से इतिहासकार यूरोप में उन अनुमानित 50 हज़ार बच्चों के अतीत की खोज में हैं, जिन्हें अगवा किया गया था. इनमें से सबसे ज्यादा पोलैंड से हैं. असली मांबाप की सुरक्षा से वंचित इन बच्चों को नाज़ी एसएस संगठन के नस्ल और पुनर्वास दफ्तर के अधिकारियों ने जर्मन परिवारों को सौंप दिया. उनकी असली पहचान छिपाने के लिए उनके नाम और उनकी जन्मतिथि बदल दिए गए.
दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद जो लोग अपना अतीत ढूंढ पाए, वे अपने वतन लौट गए. लेकिन उनका अपना देश उनके लिए अनजान बन चुका था और उन्हें ‘हिटलर संतान’ कहकर उनका पुनर्वास मुश्किल कर दिया गया. जो लोग उन अपहरणों के लिए जिम्मेदार थे, उन्हें कभी सज़ा नहीं मिली.
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