Rock YouTube channel with real views, likes and subscribers
Get Free YouTube Subscribers, Views and Likes

भरण पोषण Maintenance section 125

Follow
TheJurist

धारा 125 दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 में यह प्रावधान है किः 
1. यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति:
एः    अपनी पत्नी का जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है,
बीः    अपनी धर्मज या अधर्मज अवयस्क संतान का चाहे विवाहित हो या न हो जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है, 
सीः    अपनी धर्मज या अधर्मज संतान का, (जो विवाहित पुत्री नहीं है), जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है लेकिन ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है, या 
डीः    अपने पिता या माता का जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है, 
भरण पोषण करने में उपेक्षा या इंकार करता है तब प्रथम वर्ग मजिस्टेट, ऐसी उपेक्षा या इंकार के साबित हो जाने पर ऐसे व्यक्ति को यह निर्देश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान या पिता या माता के भरण पोषण के लिए ऐसी मासिक दर पर जिसे मजिस्टेट ठीक समझे मासिक भत्ता दे और उस भत्ते का संदाय ऐसे व्यक्ति को करें जिसको संदाय करने का मजिस्टेट समयसमय पर निर्देश दें ।
    परंतु विवाहित पुत्री यदि अवयस्क है और उसके पति के पास पर्याप्त साधन नहीं है तब मजिस्टेट उसके पिता को उक्त निर्देश दे सकता है ।
    वर्ष 2001 के संशोधन द्वारा मूल कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान अंतरिम भरणपोषण देने के प्रावधान भी जोड़े गये हैं और अंतरिम भरणपोषण के आवेदन पत्र को 60 दिन के भीतर निपटाने के निर्देश दिये गये हैं ।
व्यक्ति पर्याप्त साधन वाला है या नहीं : इस तरह कोई व्यक्ति पर्याप्त साधन वाला है या नहीं इस पर विचार करते समय यह ध्यान देना चाहिए कि वह आमदनी अर्जित करने में सक्षम है या नहीं या वह किसी गंभीर शारीरिक अयोग्यता के अधीन तो नहीं है जो उसे आय अर्जित करने में असमर्थ बना दे और यदि ऐसा नहीं है तो एक अच्छे शरीर वाले व्यक्ति को पर्याप्त साधन वाला व्यक्ति माना जाना चाहिए केवल उसके पास संपत्ति का न होना या उसका बेरोजगार होना उसे भरण पोषण के दायित्व से मुक्त नहीं करता है क्योंकि यदि कोई व्यक्ति किसी स्त्री से विवाह करता है तो उसका यह प्राथमिक दायित्व है कि पत्नी का भरण पोषण करे । पति का साधू हो जाना उसे पत्नी और बच्चों के भरण पोषण के दायित्वों से मुक्त नहीं करता है । इस संबंध में न्याय दृष्टांत हरदेव सिंह विरूद्ध स्टेट आफ यू0 पी0 1995 सी.आर.एल.जे. 1652 इलाहाबाद अवलोकनीय है।
भरण पोषण की मात्रा

वह भरण पोषण किस दर से दिलाया जाएगा। इसके लिए न्यायलय निम्न लिखित तथ्यों को ध्यान में रखेगा :
1. पक्षकारों का जीवन स्तर
3. विपक्षी के अन्य वैधानिक दायित्व
4. वर्तमान मंहगाई व आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतें
5. बच्चों के मामलों में उनका शैक्षणिक खर्च
मुस्लिम तलाक शुदा महिला के बारे में

एक मुस्लिम तलाक शुदा महिला जब तक पुनः विवाह नहीं कर लेती तब तक भरण पोषण पाने की पात्र होती है । उसके इस अधिकार को इद्दत की अवधि तक सीमित नहीं किया जा सकता । इस संबंध में न्याय दृष्टांत डेनियल लतीफ विरूद्ध यूनियन आफ इण्डिया (2001), सायरा बानो बनाम भारत संघ 2017 में भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे पुख्ता कर दिया गया। मुस्लिम फीमेल चाइल्ड भी वयस्कता तिथि तक भरण पोषण पाने के पात्र होते हैं । इस संबंध में न्याय दृष्टांत जशरथ विरूद्ध श्रीमती गुड्डी 2003 (1) एम.पी.जे.आर. 51 एवं अब्दुल हमीद विरूद्ध कुमारी गजाला 2003 वाल्यूम 1 एम.पी.डब्लू.एन. 106 अवलोकनीय है।
न्यायदृष्टांत नूर शबा खातून विरूद्ध मोहम्मद कासिम ए.आई.आर. 1997 एस.सी. 3280 में यह प्रतिपादित किया गया है कि मुस्लिम अवयस्क बच्चे वयस्कता तिथि तक भरण पोषण पाने के पात्र हैं यह तात्विक नहीं है कि वह तलाकशुदा पत्नी के साथ रह रहे हैं ।
यदि वह व्यक्ति यह प्रस्ताव करता है कि उसकी पत्नी उसके साथ रहे और पत्नी साथ रहने से इंकार करती है तब मजिस्टेट इंकारी के आधारों पर भी विचार कर सकता है । यदि पति ने अन्य स्त्री से विवाह कर लिया है या वह रखैल रखता है तो पत्नी द्वारा पति के साथ रहने से इंकार करने का पर्याप्त आधार माना जायेगा । यदि कोई पत्नी जारता की दशा में रह रही है या पर्याप्त कारण के बिना पति के साथ रहने से इंकार करती है या वह पारस्परिक सम्मति से पृथक रह रहे हैं तो पत्नी भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण पाने के अधिकारी नहीं होगी ।
मजिस्टेट यह साबित होने पर आदेश को रद्द कर सकता है कि कोई पत्नी जिसके पक्ष में इस धारा के अधीन आदेश दिया गया है जारता की दशा में रह रही है अथवा पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इंकार करती है या वह पारस्परिक सम्मति से पृथक रह रहे हैं ।

posted by rockymundogb