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।। जय चक्रधारी ।।
लीजिये आज फिर से प्रस्तुत है आपके समक्ष एक और खनीज रत्न लाजवर्त ।
फिर से जानिये के क्यों आपके अखंडित भारत पर हरदम आक्रमण होता रहा है क्युकी आपकी सभ्यता के समान धनवान देश कोई था ही नहीं जहाँ पर प्रकर्ति पूरी प्रसन्नचित्त योग मुद्रा में बैठी हों उससे ईर्ष्या कौन नहीं करेगा ??
संसार का श्रेष्ठ लाजवर्त पत्थर भी अखंडित भारत में हिन्दू कुश पर्वत के समीप निकलता था, जो आज भी वही हैं वर्तमान के वह अफ़ग़ानिस्तान में पड़ता है ।
रत्न लाजवर्त के उपयोग के साक्ष्य वैज्ञानिक खोज अनुसार १२००० वर्ष पहले तक प्राप्त होते हैं ।
राजा बलि के केशो से उत्पन्न यह रत्न वास्तव में कई रत्नो का मिश्रण है ।
यहाँ तक की इस रत्न में स्वर्ण भी मिश्रित है ।
केवल ग्रहदशाओ का ही नहीं वरन यह स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी अत्यंत लाभदायक साबित होता है ।
शनि, राहु, केतु के दुष्प्रभाव तो समाप्त करता ही है यह आपके किडनी के रोग भी शांत करता है, मस्से नहीं होने देता, हृदय पुष्ट करता है, रक्त बढ़ाता है, बवासीर पर भी कारगर है ।
दूसरी बात इस प्रकार के रत्न काम भी उसी अवस्था में करते हैं जब आयुर्वेदिक पद्यति अनुसार शोधित हों ।
एवं कहना ही क्या यदि आप नारायण मन्त्रों से इसमें और ऊर्जा भर देवें क्युकी इसमें गुरुत्व स्वर्ण विराजित हैं ।
बस शर्त यही है के पत्थर बिना कोई ट्रीटमेंट के हो, बिना रंग रोगन किया हो, और असली भी हो ।
आनन्द लीजिये ऐसी सभ्यता में जन्म लेने का जिसको अध्यन्न कर करके रेडियो अविष्कारक निकोला टेस्ला वैज्ञानिक बने, कार्ल सगण खगोलीय वैज्ञानिक बने, नेल्स हेनरिक क्वांटम थ्योरी के अविष्कारक बने, रोबर्ट ओप्पेन्हेइमेर ने तो महाभारत पढ़ कर atom bomb की खोज कर डाली ।
और आज के भारतीय इस सभ्यता का अध्यन्न ना करके स्वयं बैठी हुई डाली को काट रहे हैं ।
जब तक यह मूर्खता बंद नहीं होगी आपका देश आगे नहीं बढ़ सकता ।
।। ॐ का झंडा ऊँचा रहे ।।