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श्री भक्तामर स्तोत्र संस्कृत आचार्य मानतुंग कृत - Shree Bhaktamar stotram in sanskrit with lyrics

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#ऐलक_श्री_क्षीरसागर_जी_महाराज
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Bhaktamar paath
Jain bhaktamar stotra lyrics ke saath
भक्तामर स्तोत्र भक्तामर स्तोत्रम‍्
आचार्य मानतुंग कृत
स्वर ऐलक श्री १०५ क्षीरसागर जी महाराज
भक्तामरस्तोत्र (संस्कृत) || BHAKTAMAR STOTRA (SANSKRIT)
‘भक्तामरस्तोत्र’ का पाठ समस्त विघ्नबाधाओं का नाशक और सब प्रकार मंगलकारक माना जाता है। इसका प्रत्येक श्लोक मंत्र मानकर उसकी आराधना भी की जाती है | Shri Bhaktambar Stotra
।। श्री भक्तामर स्त्रोत – संस्कृत ।। Shri Bhaktamar stotra – Sanskrit
मानतुंग आचार्य 7वी शताब्दी में राजा भोज के काल में हुए है। मंत्र शक्ति में आस्था रखने वालो के लिए यह एक दिव्य स्तोत्र है। इसका नियमित पाठ करने से मन में शांति का अनुभव होता है व सुख समृद्धि व वैभव की प्राप्ति होती है। यह माना जाता है कि इस स्तोत्र में भक्ति भाव की इतनी सर्वोच्चता है कि यदि आपने सच्चे मन से इसका पाठ किया तो आपको साक्षात ईश्वर की अनुभति होती है।
आचार्य मानतुंग को जब राजा भोज ने जेल में बंद करवा दिया था। और उस जेल के 48 दरवाजे थे जिन पर 48 मजबूत ताले लगे हुए थे। तब आचार्य मानतुंग ने भक्तामर स्तोत्र की रचना की तथा हर श्लोक की रचना ताला टूटता गया। इस तरह 48 शलोको पर 48 ताले टूट गए।
इस स्तोत्र का नियमित पाठ बहुत से सकारात्मक परिणाम दिलाता है. सम्पूर्ण भक्ति भावना के साथ ही श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ करें.
आचार्य मानतुंग के द्वारा रचित इस स्तोत्र में साक्षात् भगवान की अनुभूति करवाने की क्षमता है
भक्तामरस्तोत्र (संस्कृत) || BHAKTAMAR STOTRA (SANSKRIT)
भक्तामर प्रणत मौलि मणि प्रभाणा
मुद्योतकं दलित पाप तमो वितानम्।
सम्यक् प्रणम्य जिन पाद युगं युगादा
वालम्बनं भव जले पततां जनानाम्।। 1॥

य: संस्तुत: सकल वाङ् मय तत्त्वबोधा
दुद्भूतबुद्धि पटुभि: सुर लोक नाथै:।
स्तोत्रैर्जगत् त्रितय चित्त हरैरुदारै:,
स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम्॥ 2॥

बुद्ध्या विनापि विबुधार्चित पाद पीठ!
स्तोतुं समुद्यत मतिर्विगत त्रपोऽहम्।
बालं विहाय जलसंस्थितमिन्दुबिम्ब
मन्य: क इच्छति जन: सहसा ग्रहीतुम् ॥ 3॥

वक्तुं गुणान्गुण समुद्र ! शशाङ्ककान्तान्,
कस्ते क्षम: सुर गुरुप्रतिमोऽपि बुद्ध्या ।
कल्पान्त काल पवनोद्धत नक्र चक्रं ,
को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम्॥ 4॥

सोऽहं तथापि तव भक्ति वशान्मुनीश!
कर्तुं स्तवं विगत शक्ति रपि प्रवृत्त:।
प्रीत्यात्म वीर्य मविचार्य मृगी मृगेन्द्रम्
नाभ्येति किं निजशिशो: परिपालनार्थम्॥ 5॥
Bhaktamar Stotra – श्री भक्तामर स्तोत्र
Bhaktamar Stotra – श्री भक्तामर स्तोत्र – श्री भक्तामर स्तोत्र एक अत्यंत ही दिव्य और शक्तिशाली स्तोत्र है.

posted by Albizi9y