अपने अंदर की आत्मा को पहचानें || Shri Mataji Speech
इस वीडियो में श्री माताजी ने बताई हुई है सबसे पहले जान लेना चाहिए कि हमारे अन्दर जो बहुत सी त्रुटियाँ हैं, उसका कारण है कि हम लोगों ने धर्म को समझा नहीं है। जो कुछ धर्म मात्तंडों ने बता दिया, हमने उन्हीं को सत्य मान लिया। उन्होंने कहा कि आईये आप कुछ अनुष्ठान करिये, या कुछ पूजापाठ करिये और या हर तरह की चीज़ें बनायी गयी। मुसलमानों को भी इस तरह से पढ़ाया गया कि तुम अगर इस तरह से नमाज़ पढ़ो, और इन मुल्लाओं के कहने पे चलो तो तुम्हें मोक्ष मिल जाएगा। अब मनुष्य सोचने लगा कि ऐसा तो कुछ हुआ नहीं। ऐसी तो कोई प्राप्ति हुई नहीं। फिर ये है क्या? ये कर्मकाण्डों में हम फिर क्यों फसे हुए हैं? और ये कर्मकाण्ड हमें बहुत ही गहरे अन्धकार में ले जाते हैं।
हम लोग सोचते हैं कि उस कर्मकाण्ड से हम कुछ पा लेंगे सो किसी ने कुछ पाया नहीं। जन्मजन्मान्तर से लोगों ने कितने कर्मकाण्ड किये हैं। उन्होंने क्या पाया? अब पाने का समय भी आ गया। आज इस कलियुग में ये समय आ गया है, ऐसा आया है कि आपको सत्य प्राप्त हो। सत्य की प्राप्ति यही सबसे बड़ी चीज़ है और सत्य ही प्रेम है, और प्रेम ही सत्य है। इसकी ओर आप जरा विचार करें कि हम सत्य को खोजते हैं तो सोचते हैं कि सन्यास ले लें, हिमालय पे जाएं। अपने बाल मुण्डवा लें और और तरह की चीज़ें करें। जब सत्य का वास अन्दर है तो ये बाह्य की चीज़ों से और उपकरणों से क्या होने वाला है। इससे तो मनुष्य पा नहीं सकता सत्य को। क्योंकि इसके साथ कुछ सत्य लिपटा ही नहीं है। तो करना क्या है? करना ये है कि आपके अन्दर जो सुप्त शक्ति कुण्डलिनी की है, उसे जागृत करना है। अब कुण्डलिनी की शक्ति आपके अन्दर है या नहीं, ऐसी शंका करना भी व्यर्थ है। हर एक इन्सान के अन्दर त्रिकोणाकार अस्थी में कुण्डलिनी की शक्ति है। और उसे जागृत करना बहुत ही जरुरी है जिससे कि आप उस चीज़ को आप प्राप्त करें जिसे मैं कहती हूँ, ‘सत्य’, ‘वास्तविकता’। सबने कहा है कि, ‘अपने को जानो, अपने को पहचानो।’ लेकिन कैसे? हम तो अपने आपको जानते ही नहीं है। हम जो हैं अपने अन्दर से, ना जाने कितनी त्रुटियों से भरे हुए हैं। लोभ, मोह, मद, मत्सर सब तरह की चीज़़ें हमारे अन्दर हैं। और हम ये समझ नहीं पाते कि ये कहाँ से सब आ रही है, और क्यों हमें इस तरह से ग्रसित किया हुआ है। इस चीज़ को अगर आप ध्यान पूर्वक समझे तो एक बात है कि ये त्रुटियाँ जो हैं ये सब बाह्य की हैं। आत्मा शुद्ध निरन्तर है, उसके ऊपर कोई भी तरह की लांछना नहीं आती है
चैतन्य से एकाकारिता के लिए कुण्डलिनी ही उसका मार्ग है, और कोई मार्ग नहीं। कोई कुछ भी बतायें और कोई मार्ग है ही नहीं
Reference : 2001 0325 ( part 1 ) || Divine Sahajyog
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