साल 2012. उत्तराखंड में करोड़ों की जमीन की ख़रीदफ़रोख़्त का एक मामला सामने आता है. ये जमीन यूं तो Reserve Forest की होती है लेकिन इसके बावज़ूद इसका सौदा कर दिया जाता है क्योंकि इसे ख़रीदने वाला कोई और नहीं बल्कि ख़ुद Uttarakhand Police का सबसे बड़ा अधिकारी होता है. जमीन का सौदा सिर्फ़ काग़ज़ों में ही नहीं किया जाता बल्कि मौके पर भी साल के घने जंगल के बीच दर्जनों बेशक़ीमती पेड़ काट कर गिरा दिए जाते हैं. वन विभाग को जब अपने पेड़ों के कटान की भनक लगती है और वे इस मामले में कार्रवाई करना चाहते हैं तो लाचार से नज़र आने लगते हैं. क्योंकि उन्हें जिस आदमी पर कार्रवाई करनी है, वो ख़ुद प्रदेश पुलिस का मुखिया है. मामले की जब जाँच होती है तो वन विभाग के अधिकारियों से लेकर प्रशासन में बैठे सचिव तक, सब अपनी रिपोर्ट में ये तो स्वीकारते हैं कि इस मामले में बड़ा फ़र्ज़ीवाड़ा हुआ है लेकिन इसके बावज़ूद दोषी पुलिस अधिकारी के ख़िलाफ़ एक FIR दर्ज होने में ही दस साल लग जाते हैं. इस अधिकारी का नाम है BS Siddhu (बीएस सिद्धू) जो उत्तराखंड के पूर्व DGP यानी Director General of Police रहे हैं और जिनके ख़िलाफ़ हाल ही में देहरादून के राजपुर थाने में कई आपराधिक धाराओं में मुक़दमा दर्ज किया गया है.
आज की व्याख्या में इस मामले के ज़रिए आपको बताएँगे कि उत्तराखंड में ज़मीनों की ख़रीदफ़रोख़्त का खेल कैसे रचा जाता है, कैसे एक मरे हुए इंसान को जीवित दिखाकर जमीन का सौदा कर दिया जाता है, कैसे सफ़ेदपोश सभी नियमक़ानूनों को ताक पर रख देते हैं और कैसे शासनप्रशासन इस खुले खेल फ़र्रुख़ाबादी का मूक दर्शक बना रहता है. लेकिन आज की कहानी सिर्फ़ निराशा, हताशा और भ्रष्टाचार की ही कहानी नहीं है बल्कि संघर्ष और ईमानदारी की एक बेमिसाल लड़ाई की भी कहानी है. क्योंकि इस कहानी में बीएस सिद्धू के अलावा एक पात्र और भी है जिसने इस पूरे प्रकरण में सबसे बड़ी क़ीमत चुकाई लेकिन फिर भी अपनी लड़ाई को कमजोर नहीं होने दिया. इस पात्र ने एक मामूली सब इन्स्पेक्टर होने के बावज़ूद प्रदेश के सबसे बड़े पुलिस अधिकारी से लोहा लिया और अंततः इस लड़ाई को जीता भी. ये पात्र हैं उत्तराखंड पुलिस के Retired Sub Inspector Nirvikar Singh
व्याख्या with Rahul Kotiyal के पहले एपिसोड में देखिए इस पूरे प्रकरण का विस्तार.
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